कबूल करना मुश्किल था - 1 MANISH SINGH द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कबूल करना मुश्किल था - 1

Exams के बाद की छुट्टियां शुरु हो चुकी थी बी टेक का थर्ड ईयर भी ना कमाल का गुजरा। अब हम बहुत दिनों से सोच ही रहे थे कि ट्रिप पर जाना है, प्लेन भी हम चार दोस्तों ने बहुत पहले से ही बना रखा था।

'दीपसी' मेरी closest friend जो कॉलेज के पहले दिन से ही मुझसे जुड़ी हुई है, ऊपर से बेहद मासूम दिखती है पर अंदर से मुझे यह पता है क्या-क्या बातें सोचती है। हम दोनों एक दूसरे के secret keeper भी है कोई भी बात मन में चल रही होती है बेझिझक एक दूसरे से बांट सकते हैं, वह दर्पण को बहुत ज्यादा पसंद करती है। अपने ग्रुप का तीसरा मेंबर 2 साल से उसने उसे क्रश ही बना रखा है कहती है दोस्ती ना टूट जाए बोलकर। वैसे मैं भी तो दीपसी से अलग नहीं हूं, मैं भी कहां प्रज्ञा से कुछ बोल पाता हूं।

हम चारों ना साथ रह रह के अच्छे दोस्त बन चुके हैं तो मैं बीच में कहां प्यार की बातें लाता फिरुं। क्लास में भी हम चारों साथ ही बैठते हैं पर पढ़ाई में केवल दीपसी ने ही झंडे गाड़े हुए हैं सारे प्रोजेक्ट असाइनमेंट्स पता नहीं कैसे टाइम से कंप्लीट कर लेती है पर उसी की वजह से हम भी टीचर उसकी नजरों में आगे हुए हैं। हमने भी ट्रिप पर जाने का बहुत पहले से डिसाइड किया हुआ था रोज कॉलेज जा जा कर थक चुके थे तो ये ब्रेक लेना भी जरूरी था।

मसूरी का प्लान बनाया और दर्पण की गाड़ी से हम रवाना हो गए ड्राइव करना सिर्फ उसे ही आता था हम तो बस गाने चेंज करने में ही लगे थे, पीछे प्रज्ञा थोड़ी शांत सी बैठी हुई मन ही मन मुस्कुरा रही थी उसी के पसंद के गाने बज रहे थे और उसी पे वो अपने होंठ भी हिला रही थी मैं चोरी चोरी उसको एकटक देखता लेकिन उससे मेरा मन भर ही नहीं रहा था। उसे रोज देखता हूं मैं पर ऐसे चोरी चोरी देखने का ना मजा ही कुछ अलग था।

पीछे से दीपसी बार-बार मेरे कानों में उसका नाम लेकर चिड़ा रही थी और वो जब भी ऐसा करती तब मैं दर्पण को कहता oye दीपसी तुझसे कुछ कहना चाह रही थी और दर्पण का नाम सुनते ही उसके हावभाव बदल जाते थे। दो एक तरफा कहानी एक साथ चल रहे थे पर उससे सभी अनजान थे, हम बातें करते करते यादें बुनते बुनते सफर का पूरा लुफ्त उठा रहे थे, हवा भी काफी तेज चल रही थी और उस हवा के संग मानो हम भी बहे जा रहे थे।

दोस्तों के साथ घूमने जाने का मजा ही अलग होता है ना सारी दुनिया परेशानियों को पीछे छोड़ कर यह ब्रेक लेना भी कितना जरूरी होता है ना, अभी दिमाग बिल्कुल खाली था और चेहरे पर असली वाली मुस्कुराहट थी कल क्या हुआ था आगे क्या होगा अभी किसी चीज की कोई टेंशन ही नहीं थी तीन-चार दिनों का वक्त सिर्फ हमारा होने वाला है सुबह उठते ही मुझे प्रज्ञा का चेहरा दिखेगा सब कुछ एक ख्वाब सा होने वाला है, कुछ घंटों के बाद जहां पहुंचना था हमें पहुंच गए

आगे की कहानी पढ़ने के लिए थोड़ा इंतजार करें।।